”एनपीएस को भारत सरकार ने एक पेंशन सह निवेश योजना के तौर पर शुरू किया था, ताकि सरकारी कर्मियों को वृद्धावस्था प्रदान की जा सके…”
केंद्र सरकार के ऐसे लाखों कर्मी, जो पहली जनवरी 2004 के बाद नौकरी में आए हैं, उन्हें पुरानी पेंशन व्यवस्था से बाहर कर दिया गया था। सेना को छोड़कर बाकी विभागों के कर्मचारी, जिनमें केंद्रीय अर्धसैनिक बल भी शामिल हैं, वे सब राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली (एनपीएस) के दायरे में आ गए। एनपीएस को भारत सरकार ने एक पेंशन सह निवेश योजना के तौर पर शुरू किया था, ताकि सरकारी कर्मियों को वृद्धावस्था सुरक्षा प्रदान की जा सके।
अधिकांश विभागों ने एनपीएस का पुरजोर विरोध किया, लेकिन सरकार ने अपना फैसला वापस नहीं लिया। अब दोबारा से कर्मचारी संघ पुरानी पेंशन व्यवस्था को बहाल करने की मांग कर रही हैं। यह मामला संसद में भी पहुंच गया है। केंद्र सरकार ने जवाब दिया है कि इस मामले में कर्मचारियों को एक विकल्प मिल सकता है, लेकिन इसमें भी शर्त रहेगी। कार्मिक, लोक शिकायत तथा पेंशन मंत्रालय एवं प्रधानमंत्री कार्यालय में राज्य मंत्री डॉ. जितेंद्र सिंह के अनुसार, कुछ कर्मचारी इस मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट और दिल्ली हाईकोर्ट में गए हैं। यह मामला अनिर्णीत विषय नहीं है।
बीएसएफ के कुछ सिपाहियों के मामले में दिल्ली उच्च न्यायालय ने 12 फरवरी 2019 को टांका राम बनाम भारत संघ 2019 (174) डीआरजे 146 (डीबी) में अपने फैसले के द्वारा याचिकाकर्ताओं की अर्जी को अनुमति दी थी। साथ ही उन्हें पुरानी पेंशन का हितलाभ प्राप्त करने की अनुमति प्रदान की गई। यह भी आदेश दिया गया कि पुरानी पेंशन जारी रखने का विकल्प उन सभी के लिए विस्तारित किया जाना चाहिए, जिनका 2003 में आयोजित परीक्षा में चयन किया गया था, लेकिन उन्हें बुलावा पत्र जनवरी या फरवरी 2004 में जारी किया गए थे।
सभी प्रासंगिक पहलुओं पर विचार करने के बाद और आगे की मुकदमेबाजी को कम करने के लिए ऐसे समरूप नियोजित सरकारी कर्मचारियों को लाभ प्रदान करने के लिए, पेंशन और पेंशनभोगी कल्याण विभाग के दिनांक 17 फरवरी 2020 के कार्यालय ज्ञापन के तहत सरकार ने यह निर्णय लिया है कि उन सभी मामलों में, जहां दिनांक 31 दिसंबर 2003 को या इससे पूर्व होने वाली रिक्तियों के सापेक्ष, भर्ती के लिए परिणाम दिनांक एक जनवरी 2004 से पूर्व घोषित किए गए थे, भर्ती के लिए सफल घोषित किए गए अभ्यर्थी केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियमावली, 1972 के अंतर्गत कवर किए जाने के पात्र होंगे।
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तदनुसार, ऐसे सरकारी कर्मियों को, जिन्हें दिनांक एक जनवरी 2004 से पूर्व होने वाली रिक्तियों के सापेक्ष में दिनांक 31 दिसंबर 2003 को या उससे पूर्व घोषित परिणामों में भर्ती के लिए सफल घोषित किया गया था। दिनांक एक जनवरी 2004 को या उसके बाद कार्यभार ग्रहण करने पर राष्ट्रीय पेंशन प्रणाली के तहत कवर किए जा रहे हैं, को केंद्रीय सिविल सेवा (पेंशन) नियमावली, 1972 के तहत कवर किए जाने के लिए एक बार विकल्प दिया जा सकता है।
ऑल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन (एआईआरएफ) के महामंत्री शिव गोपाल मिश्रा का कहना है कि न्यू पेंशन स्कीम लागू होने से रेलवे में लाखों कर्मियों को आर्थिक नुकसान हो रहा है। साल 2004 के बाद नियुक्त हुए कर्मचारी अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। चूंकि उनकी पेंशन बंद हो गई है तो बुढ़ापे में कौन उनका सहारा बनेगा। सरकार को इस संबंध में कई बार ज्ञापन दिया जा चुका है कि सभी कर्मियों को बराबरी पर लाया जाए। यानी पहले की भांति सभी केंद्रीय कर्मी पुरानी पेंशन व्यवस्था का हिस्सा बने रहें।
कॉन्फेडरेशन ऑफ एक्स पैरामिलिट्री फोर्स वेलफेयर एसोसिएशन के महासचिव रणबीर सिंह बताते हैं, सरकार ने केंद्रीय अर्धसैनिक बलों को भी नहीं बख्शा। इन्हें भी सरकार ने पुरानी पेंशन व्यवस्था से बाहर कर दिया। केंद्रीय गृह मंत्री को इस बाबत कई बार ज्ञापन दिया गया है, लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई। ऑल इंडिया पोस्टल एम्प्लाइज यूनियन के सर्किल सचिव सुरेंद्र एस पल्लव के अनुसार, इस बारे में केंद्रीय राज्य मंत्री संजय धोत्रे को ज्ञापन सौंपा गया है। इसमें उन्होंने कहा है कि केंद्रीय कर्मियों के लिए पेंशन बहुत जरूरी है।
सभी कर्मियों को बराबरी का दर्जा मिलना चाहिए। 2004 से पहले के कर्मी पुरानी पेंशन व्यवस्था के दायरे में हैं, लेकिन उसके बाद नियुक्त हुए कर्मियों को एनपीएस में शामिल कर दिया गया। पेंशन को पुरानी सेवा के रिवार्ड के तौर पर नहीं देखा जाना चाहिए, बल्कि ये तो कर्मचारी के लिए बुढ़ापे का सहारा है। पुरानी पेंशन स्कीम में कर्मचारी को जीपीएफ का बड़ा फायदा मिलता था। वे किसी भी जरूरत के समय इस राशि का इस्तेमाल कर सकते थे।
Source: [amarujala.com]
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