पेंशन पर सुप्रीम कोर्ट का निर्णय – पेंशन रिटायर कर्मचारियों का हक़, सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार न कि खैरात
सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने रिटायरमेंट पेंशन को सभी रिटायर सरकारी कर्मचारियों के लिए सम्मानपूर्वक जीने का अधिकार माना है. सुप्रीम कोर्ट के मुताबिक, रिटायर कर्मचारी की गरिमा कायम रखने के लिए पेंशन बहुत जरूरी है. यह इच्छा के आधार पर दी गई कोई राशि नहीं है, बल्कि सामाजिक कल्याण का कदम है और संकट की घड़ी में यानी कोरोना काल में बेहद जरूरी मदद है. इसलिए इसे देने से इनकार नहीं किया जा सकता.
पीटीआई के मुताबिक, पेंशन सेवानिवृत्ति के बाद की अवधि के लिए सहायता है न कि इच्छा होने पर कोई कृपा. यह कर्मचारी के लिए सेवानिवृत्ति के बाद सम्मान बनाए रखने के अधिकार के तौर पर किया गया एक सामाजिक कल्याण उपाय ( Social Welfare Measure) है. केरल के एक रिटायर कर्मचारी की पेंशन में हो रही सभी दिक्कतों को दूर करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा कि पेंशन सुविधा सरकारी कर्मचारी को ढलती उम्र में सम्मान के साथ जीने के लिए है और इसलिए किसी कर्मचारी को इस लाभ से बिना किसी कारण वंचित नहीं किया जा सकता.
जस्टिस एसके कौल (Justices S K Kaul), जस्टिस अजय रस्तोगी और जस्टिस अनिरुद्ध बोस की पीठ ने केरल सरकार से अपने हक का दावा करने वाले एक रिटायर कर्मचारी को राहत देते हुए राज्य सरकार को उसे अस्थायी कर्मचारी के तौर पर देखते हुए उसके 32 साल के कार्यकाल के आधार पर पेंशन लाभ देने का आदेश दिया. कर्मचारी 32 सालों तक सरकारी विभाग के साथ काम करने के बावजूद पिछले 13 सालों से अपने हक के लिए दफ्तरों का चक्कर लगा रहा था.
कर्मचारी ने दावा किया था कि सरकारी विभाग में 32 साल तक काम करने के बावजूद उसे अंतिम 13 साल के लिए ही पात्र माना गया है. पीठ ने कहा, पेंशन मदद के लिए दी जाने वाली राशि है, इसे इच्छानुसार तय नहीं कर सकते. कर्मचारी रिटायरमेंट के बाद पेंशन की मदद से ही गरिमापूर्ण जीवन जीता है. इसे देने से इनकार नहीं किया जा सकता.
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