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श्रम कानूनों को लेकर आईएलओ का हस्तक्षेप, प्रधानमंत्री को भारत के लिख‍ित वादे याद द‍िलाए

श्रम कानूनों को लेकर आईएलओ का हस्तक्षेप। आईएलओ ने प्रधानमंत्री को भारत के लिखित वादे याद दिलाए। कार्यस्थलों का ठीक से निरीक्षण नहीं करने को लेकर आईएलओ पहले ही भारत से नाखुश है।

श्रम कानूनों को लेकर आईएलओ का हस्तक्षेप

26 May 2020 अजय तिवारी॥ नई दिल्ली। एसएनबी

भारत के लिए यह किरकिरी जैसा है कि कोरोना के बहाने कई राज्यों में श्रम कानून स्थगित किए जाने पर अंतरराष्ट्रीय श्रम संगठन (आईएलओ) ने हस्तक्षेप किया है। आईएलओ के महानिदेशक ने प्रधानमंत्री को स्मरण कराया है कि भारत ने श्रमिकों के साथ अच्छा व्यवहार किए जाने का पूर्व में जो लिखित वादा किया है‚ उसे निभाया जाए। आईएलओ कार्यस्थलों का ठीक से निरीक्षण नहीं करने के मामले में पहले ही भारत से नाखुश है।

देश के दस प्रमुख श्रमिक संगठनों ( एटक‚ एचएमएस‚ इंटक‚ सीटू‚ एआईयूटीयूसी‚ सेवा‚ एआईसीसीटीयू‚ एलपीएफ‚ टीयूसीसी और यूटीयूसी) ने १४ मई को आईएलओ को पत्र लिखा था‚ उसी को लेकर आईएलओ ने हस्तक्षेप किया है। इन संगठनों ने लिखा था कि कई राज्यों की सरकारों ने कोरोना की वजह से किए गए लॉकड़ाउन में उद्योग की हालात खराब हो जाने की दलील देकर श्रम कानूनों को तीन महीने से लेकर तीन साल तक के लिए समाप्त कर दिया है। जिसमें श्रमिकों के काम के घंटे ८ से बढ़ाकर १२ कर देने और उन्हें आसानी से नौकरी से निकाला जाना भी शामिल है।

श्रमिक संगठन आईएलओ के संज्ञान में यह बात भी लाए कि आईएलओ के साथ सरकार ने जो लिखित समझौते किए हैं ये सब उनका भी घोर उल्लंघन है। आईएलओ ने २२ मई को श्रमिक संगठनों को बताया कि उन्होंने यह मामला भारत के प्रधानमंत्री के समक्ष उठाया है‚ लेकिन उन्हें अभी तक कोई जवाब नहीं मिला है। इस बीच सोमवार को श्रमिक संगठनों ने आईएलओ को एक पत्र और भेजा। इसमें राज्यवार कौन–कौन से श्रम कानून स्थगित किए जाने से श्रमिकों को क्या–क्या नुकसान होने वाला है और यह आईएलओ के किस–किस समझौते और सम्मेलन का उल्लंघन है‚ उसका भी विवरण है। आईएलओ के पिछले सम्मेलन में भारत के श्रमिक संगठनों ने कार्यस्थलों का ठीक से निरीक्षण नहीं किए जाने का मुद्’ा उठाया था‚ इस पर से आईएलओ ने भारत में एक कमेटी भेजने का फैसला लिया था। बताया जाता है कि ऐसा भारत के मामले में पहली बार हुआ। यह दूसरा वाकया है जब आईएलओ ने श्रम कानूनों के मुद्’े पर हस्तक्षेप किया है।

ऐसे हुआ अंतरराष्ट्रीय दखल

  • श्रम मंत्रालय ने कोरोना संकट में ४४ श्रम कानूनों के स्थान पर चार श्रम संहिता नहीं लाने पर आश्वासन नहीं दिया।
  • राज्यों ने कारखाना अधिनियम को ताक पर रखकर काम के घंटे ८ से बढ़ाकर १२ किए पर श्रम मंत्रालय चुप रहा ।
  • श्रमिक संगठनों से वार्ता किए बिना राज्यों ने श्रम कानून स्थगित कर दिए।

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Source: Rashtriya Sahara.

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