Seventh Pay Commission is in Last Stage: It won’t be easy for Finance Minister to implement Seventh Pay Commission, salaries are expected to rise three times. Please read this news paper report available in Hindi:-
7वां वेतन आयोग सिफारिशें देगा सितम्बर तक – तीन से चार गुणा तक हो सकती है वेतन वृद्धि
सातवाँ वेतन आयोग अंतिम चरण में – वित्त मंत्री के लिए चुनौती पूर्ण कार्य होगा वेतन आयोग लागू करना
नयी दिल्ली:- अब से तीन माह से भी कम वक्त में केन्द्र सरकार को एक कठिन राजकोषीय चुनौती का सामना करना होगा। भले ही यह संकट पूरी तरह उसका पैदा किया हुआ न हो लेकिन राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) सरकार खुद को इस दोष से बचा नहीं सकती कि उसने इसके दुष्प्रभावों से निपटने के लिए सही वक्त पर कदम नहीं उठाए । हम बात कर रहे हैं सातवें वेतन आयोग और उसकी अनुशंसाओं के क्रियान्वयन की।
संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (संप्रग) सरकार ने अपने दुसरे कार्यकाल के उत्तराद्ध में एक खास नीतिगत पहल करते हुए 28 फरवरी 2014 को सातवें वेतन आयोग का गठन किया ताकि केन्द्र सरकार के अधीन काम करने वाले सभी विभागो के कर्मचारियों के वेतन भत्तों के समीक्षा की जा सके । इसमें अखिल भारतीय स्तर की विभिन्न सेवाए तथा केंद्र शासित प्रदेश में काम करने वाले कर्मचारी, संसद के अधिनियम के तहत गठित नियामकीय संस्थान (रिजर्व बैक को छोडकर) और सर्वोच्च न्यायालय सभी शामिल थे।
न्यायमूर्ति अशोक कुमार माथुर की अध्यक्षतावाले आयोग से रक्षा बलों के वेतन भत्तों के लिए एक समुचित ढांचा पेश करने को भी कहा गया था।
आम चुनाव के ऐन पहले वेतन आयोग के गठन को लेकर शुरू हुई बहस में एक अहम पहलू के अनदेखी कर दी गई।
वह पहलू यह था कि उक्त आयोग को रियोर्ट पेश करने के लिए आदेश के दिन से 18 माह का समय दिया गया। दूसरे शब्दों में कहें तो इन अनुशंसाओं को 31 अगस्त 2015 से पहले सार्वजनिक होना है। हाँ अगर आयोग कुछ समय विस्तार मांग ले बात दूसरी है। अब तक आयोग अगस्त के आखिर तक अनुशंसाएं करने के लिए पुरी तरह तैयार दिख रहा है। इसका अर्थ यह हुआ कि राजग सरकार को इन अनुशंसाओं पर कदम उठाना होगा।
वेतन भत्तों का बोझ सरकार के बजट पर पडने की आशंका प्रबल है। ऐसे में वित्त मंत्री अरुण जेटली को पिछले वेतन आयोगों से निपटने के सरकार के प्रयासों से तीन सबक याद रखने चाहिए। पहला, कर्मचारियों के वेतन भत्ते बढ़ाने के अलावा अतीत के अधिकांश आयोगों ने सरकार में कर्मचारियों की संख्या को तार्किक करने की बात भी कही है। अतीत में सभी केंद्र सरकारों ने वेतन भत्तों के मोर्चे पर तो संशोधन स्वीकार कर लिए लेकिन कर्मचारियों की संख्या कम करने की अनुशंसा की अनदेखी कर दी गई।
उम्मीद की जा रही है कि सातवां वेतन आयोग भी सरकार के कर्मचारियों की संख्या में कुछ कटौती करने की अनुशंसा करेगा। अरुण जेटली को भी उच्च वेतन भत्तों को नौकरशाही के आकार में कमी के साथ सशर्त स्वीकार्य बनाने का प्रयास करना चाहिए।
दूसरी बात, अतीत के सभी वेतन आयोगों का सरकार की वित्तीय स्थिति पर नकारात्मक असर पडा है। इनको लागु करने के बाद के वर्ष में हमेशा राजकोषीय घाटे पर दबाव देखने को मिला है। वेतन आयोग की अनुशंसाओं का असर राज्य सरकारों के वित्त पर भी पड़ा है क्योंकि वे भी इन अनुशंसाओं को स्वीकार कर ही लेते हैं।
आयोग के सुझावों को लेकर केंद्र की प्रतिक्रिया में यह बात शामिल होनी चाहिए कि इसका राज्यों की वित्तीय स्थिति पर वया असर होगा? यदि आवश्यक हो तो जेटली को अनुशंसाओं का क्रियान्वयन रोकने अथवा उसके प्रभाव को कम करने का प्रयास जरूर करना चाहिए ।
तीसरी बात यह आम मान्यता है कि सरकारी कर्मचारियों की गुणवत्ता और उनकी क्षमता में लगातार कमी आती गई है । जबकि उनके वेतन भत्तों में समय-समय पर संशोधन होता रहा है। कर्मचारियों में निचले स्तर पर वेतन भत्ते सबसे अधिक बढाए गए है। निजी क्षेत्र के मुकाबले यह बढोतरी बहुत ज्यादा है । इसकी वजह से निचले स्तर पर सरकारी नौकरियों के लिए पद की होड़ बढी है । दुर्भाग्य की बात है कि इससे इस स्तर के कर्मचारियों की गुणवत्ता अथवा उनके कौशल में कोई सुधार देखने को नहीं मिला। एक सच यह भी है कि इन कर्मचारियों को एक स्तर के ऊपर प्रोत्रति भी नहीं मिल पाती क्योंकि अखिल भारतीय सेवाओं के चलते एक स्तर के बाद ऊपर जाना नामुमकिन है।
इसके ठीक उलट सरकार के ऊपरी स्तर की नौकरशाही का वेतन बाजार या निजी संस्थानों में उसी स्तर के कर्मचारियों को मिलने वाले वेतन की तुलना में बहुत कम होता है । इसकी वजह से शीर्ष पर प्रतिभाशाली अधिकारियों की कमी होती जा रही है और गुणवता प्रभावित हो रही है। अब डर यह है कि सातवें वेतन आयोग की अनुशंसाएं हालत को और खराब कर सकती हैं। जेटली को इस सिलसिले में वेतन आयोग की अनुशंसाओं को ध्यान में रखते हुए ऐसे तरीके तलाशने होंगे ताकि शासन के उच्च स्तर पर तो बेहतर प्रतिभाएं आए लेकिन सरकार का कुल आकार कम हो। मौजूदा सरकार के कर्मचारियों के आंकड़ें बहुत चौंकाने वाले हैं।
पांचवें व छठे वेतन आयोग की सिफारिशों को देखते हुए सातवां वेतन आयोग लागू होने पर कर्मचारियों के मूल वेतन में 40 से 50 प्रतिशत तक की बढ़ोतरी हो सकती है। पांचवें वेतन आयोग के बाद कर्मचारियों के मूल वेतन में करीब 50 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई थी जबकि छठे वेतन आयोग में ये वृद्धि न्यूनतम 40 प्रतिशत थी।
मार्च 2014 में केद्र सरकार के कुल कर्मचारियों की सरव्या 33.2 लाख होने का अनुमान लगाया गया था जबकि मार्च 2015 तक यह आंकडा 5 फीसदी बढ़कर 35 लाख हो गया। मार्च 2016 तक इनके बढ़कर 35.5 लाख होने का अनुमान है। पिछले तीन सालों में केंद्र सरकार के वेतन-भत्तों और यात्रा पर होने वाले खर्च में लगातार बढ़ोतरी हुई है। वर्ष 2013-14 के 1.21 लाख करोड़ रुपये से 14 फीसदी बढ़कर वर्ष 2014-15 में यह राशि 1.5 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गई है। चालू वर्ष के लिए वेतन का बिल करीब 9 फीसदी बढ़कर 1.5 लाख करोड़ हो जाएगा। सभी राज्यों के वेतन पर खर्च होने वाली राशि को मिला दिया जाए तो यह 5 लाख करोड़ रुपये के आसपास होगी । वहीं सातवें वेतन आयोग की वजह से वेतन बिल 6.5 लाख करोड़ रुपये हो जाएगा जो देश के सकल घरेलू उत्पाद के करीब 5 फीसदी के बराबर है। जेटली के लिए सातवें वेतन आयोग की अनुशंसाएं चुनौतियां लेकर आई हैं। उनको राजकोषीय सुदृढीकरण पर इसके प्रभाव से बचने के पूरी तैयारी करनी होगी।
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Admin
COMMENTS
Chairman heading 7th pay commiswsion Sri OP Mathur Sahab is requested to please look into the growing gap of pay,perks and pensions between Offficers and PBOR Armed Forces whereas the nature of duty,responsibilities, patterns, training , real time profession and independtly executing the fire order in the time of war wherein a Jawan on many occassion can even be a good leader for himself and his teammates than the officer or without officer have all importance with no difference but why in pay and pension only.
pl publish in English also
It is in Hindi Cannot say about the news printed thereon no comments