कागजी घोड़ों की अकड़ – नवभारतटाइम्स.कॉम
भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस) के अधिकारी आज भी विशिष्टता ग्रंथि के शिकार हैं। हाल के एक ट्विटर-वॉर से पता चलता है वे न सिर्फ विशेषाधिकार प्राप्त समूह वाले अपने दर्जे को बरकरार रखना चाहते हैं, बल्कि रिटायरमेंट के बाद भी प्राण-पण से इस कोशिश में जुटे रहते हैं कि किसी और को यह हैसियत न मिलने पाए। इन दिनों कई आईएएस अफसर इस बात से चिंतित हैं कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होने के बाद कहीं एलाइड सिविल सर्विसेज के जरिए आने वाले उनसे निचले दर्जे के अधिकारियों का वेतन और सुविधाएं उनके बराबर न हो जाए। उनमें से कई ने इसकी बाकायदा शिकायत कैबिनेट सेक्रेटरी से की है।
कुछ अफसर तो यहां तक मानते हैं कि यह प्रतियोगिता के सिद्धांत के खिलाफ है। उनकी दलील है कि सिविल सर्विसेज एग्जाम में वे सबसे ज्यादा अंक लाते हैं, लिहाजा कोई भी उच्च पद उनके सिवाय किसी और को देना उनके साथ अन्याय है। दूसरी तरफ आईपीएस और आईआरएस जैसी सेवाओं के अधिकारी यह शिकायत करते रहे हैं कि जॉइट सेक्रेटरी रैंक के पद पर उनकी नियुक्ति प्राय: नहीं हो पाती, क्योंकि ज्यादातर इन पर आईएएस ही काबिज हो जाते हैं। यह सचाई है। आईएएस अफसर तमाम निर्णायक पदों पर बैठे रहते हैं। उनकी लॉबी इस कोशिश में लगी होती है कि दूसरी किसी भी सेवा के लोगों को शीर्ष पदों पर न आने दिया जाए।
आज विश्व स्तर पर भारतीय नौकरशाही की छवि एक लापरवाह, सुस्त और भ्रष्टाचारी ढांचे की है। कुछ साल पहले हॉन्गकॉन्ग की पॉलिटिकल एंड इकनॉमिक रिस्क कंसल्टेंसी ने एशिया की बारह सबसे बड़ी अर्थव्यवस्थाओं की नौकरशाही को लेकर एक सर्वे कराया था, जिसमें भारतीय ब्यूरोक्रेट्स को सबसे निकम्मा और विकास में सबसे बड़ी बाधा पाया गया था। हमारे देश में भी यह राय जोर पकड़ रही है कि हमारी व्यवस्था की कई सारी गड़बड़ियों के लिए काफी हद तक हमारी नौकरशाही ही जवाबदेह है।
आईएएस काडर में रट्टू तोतों या किताबी कीड़ों की एक जमात खड़ी हो गई है, जिसका सामाजिक-आर्थिक बदलावों से कोई लेना-देना नहीं है। जमीनी यथार्थ से कटे हुए ये अफसर किसी भी सवाल पर रचनात्मक ढंग से सोचने के बजाय सिर्फ कागजी कवायद में जुटे रहते हैं और फैसलों को टालते रहना ही अपनी कामयाबी मानते हैं। कुछ समय पहले इन्फोसिस के संस्थापक एन. आर. नारायणमूर्ति ने कहा था कि भारतीय प्रशासनिक सेवा को समाप्त कर उसकी जगह इंडियन मैनेजमेंट सर्विस का गठन किया जाना चाहिए, जिसमें विभिन्न क्षेत्रों के विशेषज्ञों को रखा जाए। इस प्रस्ताव पर गंभीरता से विचार करना होगा। परिवर्तन की शुरुआत पोस्टिंग के स्तर पर बनी जकड़न खत्म करके की जा सकती है। सभी अखिल भारतीय सेवाओं के अलावा प्रांतीय अफसरों को भी उनके श्रेष्ठ प्रदर्शन के आधार पर सर्वोच्च पद दिए जाएं। सरकारी कामकाज में गैरसरकारी विशेषज्ञों को शामिल करने के भी कुछ नमूने पेश किए जाने चाहिए। Read at Navbharat Times
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