सातवें पे कमिशन को लेकर 5 मिथ, जिन्हें जानना आपके लिए बेहद जरूरी है..
नई दिल्ली: सातवें वेतन आयोग को सरकार की ओर से मंजूरी मिल गई है। सैलरी में बढ़ोतरी 20 से 25 फीसदी के बीच होगी। सूत्रों के अनुसार, कैबिनेट ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों से ज्यादा वेतनमान देने की मंजूरी दी है। हममें से कुछ इस बात को लेकर खुश हैं कि उनकी या उनके पारिवारिक सदस्यों की महीनेवार आय में बेतहाशा वृद्धि होने जा रही है, जबकि कुछ इस बाबत रश्क में हैं कि सरकार अपने अंडर में काम करने वाले बाबुओं, अधिकारियों, निदेशकों आदि की सैलरी बेतहाशा बढ़ा देती है। लेकिन, क्या वाकई ये बढ़ोतरी बेतहाशा और बेलगाम होती है? क्या वाकई सरकार के अंडर में काम करने वाला हरेक कर्मी अब रुपयों के ढेर पर बैठा होगा? जबकि, गैर सरकारी कर्मी सालाना मुद्रास्फीति और नौकरी की असुरक्षा के तहत मरता-पिसता रहेगा?
यदि आप भी ऐसा ही सोचते रहे हैं.. तो आइए कुछ चीजें समझें जिन पर अक्सर लोग संशय में देखे जाते हैं :
1. किस व्यक्ति की सैलरी कितनी बढ़ेगी, यह इस बात पर भी निर्भर करता है कि वह कितने समय से उस नौकरी में है और किस ग्रेड पर है। साथ ही, जिस ग्रेड में वह है, उसमें वह कब से है कितने सालों से है। जरूरी नहीं है कि किसी एक पद वाले प्रत्येक व्यक्ति की सैलरी एकदम बराबर ही बढ़े। यह उसके नौकरी के टेन्यौर जैसी अन्य कई अहम बातों पर भी निर्भर करता है। यह बढ़ोतरी हरेक के लिए अलग अलग कैलकुलेशन पर होगी।
2. वह व्यक्ति जो सरकारी मकान में रह रहा है, उसकी महीनेवार ड्रॉ होने वाली सैलरी में होने वाला इजाफा उस व्यक्ति की तुलना में कम होगा जोकि सरकारी मकान में नहीं रह रहा है। सरकारी मकान सैलरी पर असर एचआरए यानी हाउस रेंट अलाउंस के चलते पड़ेगा। जिस व्यक्ति ने रहने के लिए सरकार से हाउस लिया हुआ है जाहिर तौर पर उसकी सैलरी जो उसे महीनेवार मिलेगी, उसमें एचआरए का कंपोनेंट शामिल नहीं होगा।
3. इसी प्रकार से ट्रांसपोर्ट अलाउंस के चलते भी सैलरी पर असर पड़ेगा और इस मामले में भी कमोबेश एचआरए जैसा तर्क ही लागू होगा। डायरेक्टर या उससे ऊपर के ग्रेड के कर्मियों को यदि सरकार द्वारा घर से दफ्तर और दफ्तर से घर जाने के लिए गाड़ी दी जाती है तो उसके द्वारा हर महीने ड्रॉ की जाने वाली सैलरी के कंपोनेंट में ट्रांसपोर्ट कंपोनेंट में होने वाली वृद्धि शामिल नहीं होगी। जबकि जो व्यक्ति सरकारी गाड़ी का (यह सुविधा) नहीं कर रहा है तो उसे यह पैसा जरूर मिलेगा। तब निश्चित तौर पर उसकी महीनेवाल उठाई जाने वाली सैलरी अधिक बनेगी।
4. इसके अलावा एक बात यह भी है कि सैलरी का एक खास कंपोनेंट एचआरए इस बात से भी तय होता है कि आप किस शहर में रह रहे हैं। दिल्ली मुंबई जैसे शहरों में एचआरए का प्रतिशत निश्चित तौर पर लखनऊ कानपुर से कम है। ऐसे में टायर टू और टायर 3 सिटीज़ के सरकारी कर्मियों की सैलरी में अन्य बातें समान होने के बावजूद इस एक कारण से ऊंच-नीच हो सकती है।
5. यदि 1 लाख रुपए महीने की सैलरी में वह 75 हजार रुपए महीने ड्रॉ करता था तो यह जरूरी नहीं है कि सैलरी 2 लाख रुपए महीने की सैलरी में वह 1 लाख 75 हजार रुपए ड्रॉ करेगा क्योंकि जिस हिसाब से उसकी सैलरी बढ़ेगी, उस हिसाब से वह बढ़े हुए टैक्स स्लैब में भी आएगा जिसके चलते उसकी इनकम टैक्स पहले की तुलना में अधिक कटेगा।
एक मोटा मोटी बात यह बता दें कि सरकारी कर्मचारियों की सैलरी और भत्तों पर रिपोर्ट बनाने के लिए वेतन आयोग बनाया गया है। इसका काम हर दसवें साल में सरकारी कर्मियों की सैलरी और भत्तों की समीक्षा करके सिफारिशें सरकार को देना होता है जिसके आधार पर यह फैसला लिया जाता है कि उन्हें कितना इंक्रीमेंट दिया जाएगा।
(पीआईबी से रिटायर हुए अतिरिक्त महानिदेशक डॉक्टर विजय अग्रवाल से बातचीत पर आधारित)
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