आरक्षित श्रेणियों के अभ्यर्थी मेरिट के आधार पर सामान्य श्रेणी की रिक्तियों के लिए पात्र: सुप्रीम कोर्ट

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आरक्षित श्रेणियों के अभ्यर्थी मेरिट के आधार पर सामान्य श्रेणी की रिक्तियों के लिए पात्र: सुप्रीम कोर्ट

आरक्षित श्रेणियों के अभ्यर्थी मेरिट के आधार पर सामान्य श्रेणी की रिक्तियों के लिए पात्र: सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि आरक्षित वर्ग के उम्मीदवार सामान्य/ खुली श्रेणी के रिक्त पदों को भी भरने के लिए पात्र हैं। जस्टिस उदय उमेश ललित, एस रवींद्र भट और हृषिकेश रॉय की पीठ ने कहा कि खुली श्रेणी में क्षैतिज आरक्षण की रिक्तियों को भरने में भी इस सिद्धांत का पालन किया जाना चाहिए।

न्यायालय ने कुछ उच्च न्यायालयों के दृष्टिकोण को अस्वीकार कर दिया कि, क्षैतिज आरक्षण को प्रभावित करने के लिए उम्मीदवारों को समायोजित करने के चरण में, आरक्षित श्रेणियों के उम्मीदवारों को संबंधित ऊर्ध्वाधर आरक्षण के तहत केवल अपनी श्रेणियों में ही समायोजित किया जा सकता है, न कि “खुली या समान्य” श्रेण‌ियों में।

यह मामला उत्तर प्रदेश राज्य द्वारा पुलिस कांस्टेबलों के 41,610 पदों को भरने के लिए की गई चयन प्रक्रिया से संबंधित है। [यूपी सिविल पुलिस / प्रोविंसियल आर्मड कॉन्‍स्‍टेब्यूलरी (PAC)/ फायरमैन])। सुश्री सोनम तोमर और सुश्री रीता रानी [ओबीसी महिला और एससी महिला उम्मीदवार], ​​जिन्होंने चयन प्रक्रिया में भाग लिया था, ने सामान्य श्रेणी की महिला उम्मीदवारों के रिक्त पदों पर उनके दावों पर विचार न करने से नाराज होकर अदालत का दरवाजा खटखटाया था।

पीठ ने अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट और उच्च न्यायालय के विभिन्न पूर्व निर्णयों का उल्लेख किया है जो ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज आरक्षण के मुद्दे से संबंधित है। पीठ ने कहा, यह सिद्धांत कि किसी भी ऊर्ध्वाधर श्रेणी से संबंध‌ित उम्मीदवार “खुली या समान्‍य श्रेणी” में चयनित होने का हकदार हैं, अच्छी तरह से तय है। यह अच्छी तरह से स्वीकार किया जाता है कि यदि आरक्षित श्रेणियों के अभ्यर्थी अपनी योग्यता के आधार पर चयनित होने के हकदार हैं, तो उनका चयन आरक्षित वर्गों की श्रेणियों में नहीं किया जा सकता है, जिससे वे संबंधित हैं।

अदालत ने कहा कि राजस्थान, बॉम्बे, उत्तराखंड और गुजरात के उच्च न्यायालयों ने क्षैतिज आरक्षण से निपटने के दौरान एक ही सिद्धांत (ऊर्ध्वाधर आरक्षण का) को अपनाया है, जबकि इलाहाबाद और मध्य प्रदेश के उच्च न्यायालय ने इसके विपरीत विचार किया है।

दूसरे दृष्टिकोण के अनुसार, क्षैतिज आरक्षण को प्रभावित करने के लिए उम्मीदवारों को समायोजित करने के चरण में, आरक्षित श्रेणियों के उम्मीदवारों को संबंधित ऊर्ध्वाधर आरक्षण के तहत केवल अपनी ही श्रेणियों में समायोजित किया जा सकता है और “खुली या सामान्य श्रेणी” में नहीं।

दूसरे विचार को अस्वीकार करते हुए पीठ ने कहा, “दूसरा विचार ऐसी स्थिति की ओर ले जा सकता है कि खुली या सामान्य श्रेणी की सीटों में क्षैतिज आरक्षण के लिए समायोजन करते समय कम मेधावी उम्मीदवारों को समायोजित किया जा सकता है, जैसा कि वर्तमान मामले में हुआ है।

कुल मिलाकर, खुली सामान्य महिला वर्ग में अंतिम चयनित उम्मीदवार, जिसे क्षैतिज आरक्षण के जर‌िए समायोजन करते समय लिया गया है, ने आवेदकों की तुलना में कम अंक प्राप्त किए थे। आवेदकों के दावे को इस आधार पर अस्वीकार कर दिया गया था कि वे केवल और केवल तभी दावा कर सकते हैं, जब उनके लिए अपनी-अपनी आरक्षित श्रेण‌ियों में समायोजित होने का अवसर या मौका हो।”

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Reservation for SC and ST in Promotion : Supreme Court Judgement in Civil Appeal No.  1226  of 2020 [Arising out of S.L.P. (Civil) No. 23701 of 2019]

“दूसरा दृष्टिकोण, जो क्षैतिज आरक्षण के चरण में एक अलग सिद्धांत अपनाता है, उन स्थितियों को जन्म दे सकता है, आरक्षित श्रेणी के अधिक मेधावी उम्‍मीदवारों पर, कम कम मेधावी उम्मीदवारों को वर‌ीयता देकर चुना जा सकता है।”

सुप्रीम कोर्ट के निर्णय ने एक दृष्टांत के माध्यम से दूसरे विचार की असंगतियों की व्याख्या की है। (पैरा 26 से पढ़ें)।

इसलिए, अदालत ने माना कि ‘ओबीसी महिला श्रेणी’ से आने वाले सभी उम्मीदवारों को, जिन्होंने ‘सामान्य श्रेणी-महिला’ में नियुक्त अंतिम उम्मीदवार के प्राप्त अंकों की तुलना में अधिक अंक प्राप्त किए थे, को उत्तर प्रदेश पुलिस में कांस्टेबलों के रूप में रोजगार की पेशकश करनी चाहिए।

जस्टिस रवींद्र भट ने क्षैतिज और ऊर्ध्वाधर आरक्षण की अवधारणा को इस प्रकार समझाया-

“महिलाओं के लिए प्रदान किया गया कोटा, साथ ही साथ स्वतंत्रता सेनानियों के आश्रितों, (डीएफएफ) और पूर्व सैनिकों के आश्रितों को प्रदान किया गया कोटा, वर्तमान मामले में ‘क्षैतिज’ के रूप में जाना जाता है, जबकि सामाजिक समूहों (एससी, एसटी, ओबीसी) के लिए तय किया गया कोटा ‘ऊर्ध्वाधर’ के रूप में जाना जाता है। ‘इस अंतर शब्दावली के प्रयोग को इस तथ्य से रेखांकित किया जाता है कि बाद का अनुच्छेद 16 (4) में स्पष्ट रूप से स्वीकृत है, जबकि पहले को अनुमेय वर्गीकरण (अनुच्छेद 14, 16 (1)) की एक प्रक्रिया के माध्यम से विकसित किया गया है, हालांकि इस तरह के क्षैतिज आरक्षण अनुच्छेद 15 (3) 14 में अतिरिक्त रूप से स्थित हैं।”

राज्य की इस धारणा को खारिज करते हुए कि महिला उम्मीदवार जो सामाजिक श्रेणी के आरक्षण के लाभ की हकदार हैं, खुली श्रेणी की रिक्तियों को नहीं भर सकतीं, जज ने कहा:

“मैं यह कह कर समाप्त करूंगा कि आरक्षण, दोनों ऊर्ध्वाधर और क्षैतिज, सार्वजनिक सेवाओं में प्रतिनिधित्व सुनिश्चित करने की विधि है। इन्हें कठोर “स्लॉट्स” के रूप में नहीं देखा जाना चाहिए, जहां एक उम्मीदवार की योग्यता, जो अन्यथा उसे खुले सामान्य वर्ग में दिखाए जाने का अधिकार देती है…ऐसा करने से, सांप्रदायिक आरक्षण हो जाएगा, जहां प्रत्येक सामाजिक श्रेणी उनके आरक्षण की सीमा के भीतर सीमित है, इस प्रकार योग्यता की उपेक्षा की जाती है। खुली श्रेणी सभी के लिए खुली है, और इसमें दिखाए जाने वाले उम्मीदवार के लिए एकमात्र शर्त योग्यता है, चाहे वह किसी भी प्रकार का आरक्षण लाभ उसके लिए उपलब्ध हो।”

केस: सौरभ यादव बनाम उत्तर प्रदेश राज्य [ M.A. NO.2641 OF 2019 of SLP (CIVIL)NO.23223 OF 2018 ]

कोरम: जस्टिस उदय उमेश ललित, ज‌स्टिस एस रविंद्र भट, जस्टिस हृ‌षिकेश रॉय

आरक्षित श्रेणियों के अभ्यर्थी मेरिट के आधार पर सामान्य श्रेणी की रिक्तियों के लिए पात्र

Source: https://hindi.livelaw.in/

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